सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी(AMU) का अल्पसंख्यक का दर्जा फिलहाल बरकरार रखा है, लेकिन साथ में यह भी साफ किया कि एक नई बेंच इसको लेकर गाइडलाइंस बनाएगी. CJI ने अपने फैसले में बताया कि एक 3 सदस्यीय नियमित बेंच अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे पर फाइनल फैसला करेगी. यह बेंच 7 जजों की बेंच के फैसले के निष्कर्षों और मानदंड के आधार पर AMU के अल्पसंख्यक दर्जे के बारे में अंतिम फैसला लेगी।
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को माइनॉरिटी स्टेटस देने के मामले में 7 जजों की बेंच का फैसला शुक्रवार को आया. हालांकि यह फैसला सर्वसम्मति से नहीं बल्कि 4:3 के अनुपात में आया है. फैसले के पक्ष में सीजेआई, जस्टिस खन्ना, जस्टिस पारदीवाला जस्टिस मनोज मिश्रा एकमत रहे. वहीं जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एससी शर्मा का फैसला अलग रहा।
नई बेंच अल्पसंख्यक संस्थानों के लिए गाइडलाइंस भी बनाएगी. मसलन अल्पसंख्यक संस्थान को बनाने और उसके प्रशासन से लेकर सारी गाइडलाइन बेंच बनाएगी. 7 जजों के फैसले के आधार पर दूसरी बेंच करेगी सुनवाई. अब ये बेंच तय करेगी कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी अल्पसंख्यक है नहीं. अभी सुप्रीम कोर्ट ने ये तय नहीं किया है कि AMU अल्पसंख्यक है या नहीं. SC ने मानदंड तय किया है कि अल्पसंख्यक दर्जा किसे दिया जा सकता है.
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली ने कहा, “हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हैं जिसमें उसने 1967 के अपने फैसले को खारिज कर दिया है। तब फैसले में कहा गया था कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है।
मुझे लगता है कि एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे को तय करने में सुप्रीम कोर्ट का फैसला काफी मददगार साबित होगा। सभी ऐतिहासिक तथ्य हमारे सामने हैं और हम उन्हें तीन जजों की बेंच के सामने पेश करेंगे। सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जाता है तो फिर कौन सा संस्थान अल्पसंख्यक संस्थान माना जाएगा और अनुच्छेद 30ए का क्या होगा?”