लखनऊ। बाराबंकी की 42 वर्षीय गृहिणी श्रीमती सुनीता वर्मा दो साल से एड़ी के दर्द से जूझ रही थीं, जिससे उनके लिए सबसे आसान काम भी मुश्किल हो जाता था—रसोई में खड़े रहना, बाज़ार जाना या अपने बच्चों के साथ खेलना—एक कठिन संघर्ष जैसा लगता था। दर्द निवारक दवाइयाँ लेने, मलहम लगाने और आराम करने के बावजूद, हर सुबह और लंबे समय तक काम करने के बाद उनकी एड़ियों में तेज़, चुभने वाली तकलीफ़ वापस आ जाती थी।
जब उनकी स्थिति उनके आत्मविश्वास और दैनिक क्रियाकलाप को प्रभावित करने लगी, तो उन्हें एसजीपीजीआई के फिजिकल मेडिसिन व रिहैबिलिटेशन (पीएमआर) विभाग में भेजा गया। वहाँ, विस्तृत नैदानिक मूल्यांकन और मस्कुलोस्केलेटल अल्ट्रासाउंड के बाद, उन्हें क्रॉनिक प्लांटर फ़ेशियाटिस का पता चला—प्लांटर फ़ेशिया की एक बिगड़ी हुई स्थिति, जो आमतौर पर लंबे समय तक खड़ी रहने वाली महिलाओं में देखी जाती है।
पीएमआर टीम ने उनके साथ पुनर्योजी उपचार विकल्पों पर चर्चा की, जिसमें अल्ट्रासाउंड गाइडेड प्लेटलेट-रिच प्लाज़्मा (पीआरपी) थेरेपी भी शामिल थी—एक आधुनिक, साक्ष्य-आधारित दृष्टिकोण जिसमें रोगी के क्षतिग्रस्त ऊतकों के उपचार के लिए रोगी के अपने प्लेटलेट्स का उपयोग किया जाता है। अल्ट्रासाउंड की मदद से प्रभावित फ़ेशिया में पीआरपी को सटीक रूप से इंजेक्ट किया गया। रोगी की सुविधा और सटीक उपचार सुनिश्चित करने के लिए यह प्रक्रिया पीएमआर विभाग के अल्ट्रासाउंड इंटरवेंशन स्यूट में सुरक्षित रूप से की गई।
पुनर्वास कार्यक्रम के तहत रोगी को स्ट्रेचिंग, पैरों को मजबूत बनाने, जूतों में बदलाव और उचित प्रकार से खड़े होने व चलने का प्रशिक्षण भी दिया गया। अगले कुछ हफ्तों में उनकी स्थिति में उल्लेखनीय सुधार हुआ। छह हफ्तों के भीतर उनका सुबह का एड़ी का दर्द लगभग समाप्त हो गया और तीन महीने के भीतर वे लंबे समय तक खड़ी रह सकती थीं। बाद में किए गए अल्ट्रासाउंड में ऊतक बेहतर और सूजन कम दिखाई दी।
आज श्रीमती वर्मा बिना किसी दर्द के मुस्कुराते हुए क्लिनिक में प्रवेश करती हैं और advanced regenerative therapy and functional rehabilitation के संयुक्त उपचार के लिए विभाग का आभार व्यक्त करती हैं, जिसने उन्हें सामान्य जीवन की ओर लौटने में मदद की।
एसजीपीजीआई का पीएमआर विभाग ऐसे रोगियों की यूएसजी-गाइडेड इंटरवेंशंस, पीआरपी और ग्रोथ फैक्टर कंसन्ट्रेट (जीएफसी) थेरेपी के माध्यम से मदद करना जारी रखता है — ये वैज्ञानिक रूप से सिद्ध विधियाँ हैं, जो लंबी चलने वाली दवाओं पर निर्भरता को कम करती हैं और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करती हैं।
एसजीपीजीआई का फिजिकल मेडिसिन एंड रिहैबिलिटेशन विभाग अब एपेक्स ट्रॉमा सेंटर में एक समर्पित फुट एंड एंकल रिहैबिलिटेशन क्लिनिक शुरू कर रहा है, जो हर शुक्रवार को आयोजित किया जाएगा। यह क्लिनिक सभी आयु वर्ग के रोगियों में पैर और टखने की समस्याओं के निदान, मूल्यांकन और प्रबंधन के लिए एक व्यापक वन-स्टॉप सुविधा के रूप में कार्य करेगा।
क्लिनिक में अल्ट्रासाउंड (यूएसजी) गाइडेड इंटरवेंशन का विशेष उपयोग किया जाएगा, जिससे वास्तविक समय इमेजिंग के तहत सटीक सुई प्लेसमेंट संभव होगा। यह न्यूनतम इनवेसिव और शीघ्र स्वास्थ्य लाभ देने वाला उपचार है, जिसमें दर्द और असुविधा कम होती है।
क्लिनिक में प्लेटलेट-रिच प्लाज़्मा (पीआरपी) और ग्रोथ फैक्टर कॉन्संट्रेट (जीएफसी) जैसी पुनर्योजी चिकित्सा विधियाँ भी उपलब्ध होंगी, जो रोगी के अपने रक्त से प्राप्त घटकों का उपयोग कर ऊतक की मरम्मत और प्राकृतिक उपचार को बढ़ावा देती हैं।
इस पहल के माध्यम से मरीज एक ही मुलाक़ात में निदान, इमेजिंग और उपचार प्राप्त कर सकेंगे। प्रारंभिक और सटीक हस्तक्षेप से गतिशीलता बहाल करने, दर्द कम करने और आत्मनिर्भरता हासिल करने में मदद मिलेगी।
इस अवसर पर एपेक्स ट्रॉमा सेंटर के प्रमुख प्रोफेसर अरुण श्रीवास्तव ने कहा कि यह क्लिनिक निचले अंगों की चोटों और पुरानी पैर-टखने की बीमारियों वाले रोगियों के लिए व्यापक, बहु-विषयक देखभाल की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
संस्थान के निदेशक प्रोफेसर आर.के. धीमन ने इस पहल के लिए विभाग को बधाई दी और एडीशनल मेडिकल सुपरिटेंडेंट प्रोफेसर आर. हर्षवर्धन ने कहा कि यह विभाग अत्याधुनिक चिकित्सा विज्ञान को मानवीय संवेदना के साथ रोगी सेवा में एकीकृत करने के संस्थान के मिशन के प्रति समर्पित है।