लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के एक आश्रय केंद्र में बड़ा हादसा हुआ, जिसमें चार मासूम बच्चों की मौत हो गई, जबकि 20 से अधिक बच्चे गंभीर हालत में अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं। इस घटना ने सरकार और प्रशासन पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

लखनऊ के एक सरकारी आश्रय केंद्र में बीती रात यह दर्दनाक घटना घटी। प्रारंभिक रिपोर्टों के मुताबिक, आश्रय केंद्र में रहने वाले बच्चों को अचानक स्वास्थ्य संबंधी गंभीर परेशानियां होने लगीं। जब तक उन्हें अस्पताल पहुंचाया गया, तब तक चार बच्चों ने दम तोड़ दिया। बाकी बच्चों की हालत भी गंभीर बनी हुई है और डॉक्टरों की टीम उनका इलाज कर रही है।
स्थानीय सूत्रों के अनुसार, आश्रय केंद्र में लंबे समय से बदइंतजामी और भ्रष्टाचार की शिकायतें मिल रही थीं। लेकिन सरकार और प्रशासन ने इन शिकायतों को नजरअंदाज कर दिया। इस हादसे के पीछे खाने में ज़हर की आशंका जताई जा रही है, हालांकि प्रशासन ने अभी तक इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं की है।

घटना के बाद सरकार ने जांच के आदेश दे दिए हैं, लेकिन विपक्ष और स्थानीय नागरिकों का कहना है कि यह सिर्फ एक दिखावा है। सवाल उठ रहे हैं कि क्या दोषियों पर कार्रवाई होगी या हमेशा की तरह यह मामला भी ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा?
मृतकों के परिवारों का कहना है कि सरकार ने उनके बच्चों की जिंदगी से खिलवाड़ किया है। एक पीड़ित माता-पिता ने कहा, “हमने अपने बच्चों को आश्रय केंद्र में इसलिए रखा था ताकि उन्हें अच्छा जीवन मिले, लेकिन यहां तो उन्हें मौत मिल गई।”
बताया जाता है कि घटना रविवार-सोमवार की है। मामला डीएम के संज्ञान में भी मंगलवार को आ गया था। इसके बावजूद उन्होंने ना तो स्वास्थ्य मंत्री को बताया ना ही मुख्यमंत्री ऑफिस तक मामले को जाने दिया। मंडला आयुक्त को भी घटना की जानकारी बुधवार को हुई। इसके बाद सारे अधिकारी घटना की लीपापोती में लग रहे। यहां तक की चौथी मौत को भी छुपा रहे थे, लेकिन भास्कर ने इसका खुलासा किया तो पुष्टि करने को मजबूर हुए।
निर्वाण आश्रय के कर्मचारियों ने बताया कि 23 मार्च की रात खाना खाने के बाद बच्चों की तबीयत बिगड़ने लगी। 23 मार्च से 26 मार्च के बीच 35 बच्चों को अलग-अलग अस्पताल ले जाया गया।अगले दिन यानी 24 मार्च को लोकबंधु अस्पताल में एक बच्ची दीपा (15) की मौत हो गई। जबकि बलरामपुर अस्पताल में सूरज (12) और ठाकुरगंज अस्पताल में शिवांक (15) की मौत हुई।
4 बच्चों की मौत के बाद निर्वाण आश्रय केंद्र के बदइंतजामी की हकीकत खुल गई। कमिश्नर रोशन जैकब ने कहा कि आश्रय केंद्र के पानी की जांच कराई जाएगी। उन्होंने कहा- आश्रय केंद्र यानी रिहैबिलिटेशन सेंटर का कुछ महीने पहले दौरा किया था। तब सभी व्यवस्थाएं दुरुस्त पाई गई थी। कुछ कमियां थी उनको भी ठीक करने के निर्देश दिए थे। जरूरी बजट भी दिया गया था।
हैरानी की बात यह है कि 24 मार्च को 3 बच्चों की मौत के बाद भी आश्रय स्थल का प्रशासन पूरी घटना को दबाए रहा। 26 फरवरी की सुबह रेनू (13) की लोकबंधु अस्पताल में मौत हुई। जबकि गोपाल और लकी नाम के दो बच्चों को गंभीर हालत में KGMU रेफर किया गया। इसके बाद मामला सुर्खियो में आया।
निर्वाण आश्रय केंद्र पारा इलाके के बुद्धेश्वर में बना है। यह सरकार की मदद से पीपीपी मॉडल पर संचालित होता है। मानसिक कमजोर, अनाथ और लावारिस बच्चों को यहां रखा जाता है। अभी यहां 146 बच्चे हैं। ज्यादातर की उम्र 10 से 18 साल के बीच है।
डिप्टी सीएम बृजेश पाठक दोपहर बाद लोकबंधु अस्पताल पहुंचे। यहां भर्ती बच्चों की तबीयत का हाल जाना। उन्होंने कहा- इलाज का सारा खर्चा सरकार उठाएगी। हमारी पहली प्राथमिकता बच्चों का बेहतर इलाज है। इस मामले की जांच कराई जाएगी। दोषियों के ऊपर सख्त कार्रवाई होगी।
इस घटना ने प्रदेश सरकार की कार्यशैली पर गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़े कर दिए हैं। विपक्ष ने इसे सरकार की नाकामी बताते हुए मुख्यमंत्री से इस्तीफे की मांग की है। प्रशासन का कहना है कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा, लेकिन क्या सच में न्याय मिलेगा या फिर यह मामला भी अन्य मामलों की तरह भुला दिया जाएगा?
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