‘मेरा पानी उतरता देख, किनारों पर घर मत बसा लेना… मैं समंदर हूं, लौटकर वापस आऊंगा।’
देवेंद्र फडणवीस ने दुष्यंत कुमार का यह शेर 1 दिसंबर 2019 को महाराष्ट्र विधानसभा में पढ़ा था। 28 नवंबर 2019 को भाजपा से अलग होकर उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस और NCP के समर्थन से मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। उद्धव ठाकरे की वजह से ही फडणवीस CM बनते-बनते रह गए थे।
23 नवंबर 2024, यानी 5 साल पूरे होने के 5 दिन पहले महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव का रिजल्ट आया। भाजपा 149 सीटों पर लड़ी, 132 सीटें जीतीं। उसके गठबंधन ने 288 सीटों में से रिकॉर्ड 230 सीटें जीतीं।
भाजपा का स्ट्राइक रेट 88% रहा। हालांकि, वोट शेयर (26.77%) में मामूली इजाफा हुआ। 2019 के चुनाव में वोट शेयर 26.10% था। 0.67 वोट मार्जिन के साथ भाजपा को 27 सीटों का फायदा हुआ।
कांग्रेस नेतृत्व वाले महा विकास अघाड़ी (MVA) को 46 सीटें मिलीं। इस चुनाव में मुकाबला 6 बड़ी पार्टियों के दो गठबंधन में था। महायुति में भाजपा, शिवसेना (एकनाथ शिंदे) और एनसीपी (अजित पवार) शामिल है, जबकि महाविकास अघाड़ी में कांग्रेस, शिवसेना (उद्धव ठाकरे) और एनसीपी (शरद पवार)।
महाराष्ट्र विधानसभा की 288 सीटों पर 20 नवंबर को वोटिंग हुई थी। 2019 के मुकाबले इस बार 4% ज्यादा वोटिंग हुई। 2019 में 61.4% वोट पड़े थे। इस बार 65.11% वोटिंग हुई।
महाराष्ट्र के चुनाव परिणामों में एनडीए गठबंधन महायुति की एकतरफा जीत से एक बात साफ हो गई कि राज्य में मराठा और हिंदुत्व की राजनीति के दो बड़े चेहरे सियासत में प्रभावहीन हो जाएगी।
बालासाहेब ठाकरे के 64 वर्षीय बेटे उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने इस बार 95 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे। लेकिन सिर्फ 20 पर सिमट गई है। वोट शेयर 10.10% रह गया है। इससे यह तय हो गया है कि महाराष्ट्र की जनता ने शिवसेना (शिंदे) को ही असली शिवसेना माना है और उद्धव ठाकरे की शिवसेना को नकार दिया है। इसके मायने यह भी हैं कि हिंदुत्व की राजनीति पर बाल ठाकरे के परिवार की दावेदारी कमजोर होगी। माना जा रहा है कि महाराष्ट्र की जनता ने 2019 में एनडीए से अलग होकर कांग्रेस और एनसीपी के साथ गठबंधन करना स्वीकार नहीं किया।
84 साल के शरद पवार ने प्रचार के बीच बारामती से कहा था, ‘भविष्य में चुनाव नहीं लड़ूंगा। 14 बार चुनाव लड़ चुका हूं। समाज के लिए काम करना चाहता हूं।’ ऐसा होता है तो यह उनका आखिरी चुनाव होगा। अगले लोकसभा व विधानसभा चुनाव 2028 में संभावित हैं। ऐसे में 89 की उम्र में चुनावी मैदान संभालना मुश्किल होगा। शरद ने 1960 में कांग्रेस से करियर शुरू किया था। इस बार 86 प्रत्याशी खड़े किए, पर 10 ही जीते। यह पवार का सबसे खराब प्रदर्शन है। पार्टी का वोट शेयर घटकर 11.29% रह गया है। यह उनके 6 दशक लंबी सियासत का सबसे खराब चुनाव साबित होगा।